मुझे माफ़ करना, लेकिन मैं सम्राट नहीं बनना चाहता। यह मेरा काम नहीं है। मैं किसी पर शासन या विजय नहीं चाहता।
अगर हो सके तो मैं सबकी मदद करना चाहूँगा। हम सब एक-दूसरे की मदद करना चाहते हैं -- इंसान ऐसे ही होते हैं। हम सब एक-दूसरे की खुशी से जीना चाहते हैं, एक-दूसरे के दुख से नहीं। हम एक-दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस दुनिया में सबके लिए जगह है और धरती समृद्ध है और सबकी ज़रूरतें पूरी कर सकती है।
जीवन का मार्ग स्वतंत्र और सुंदर हो सकता है। लेकिन हम रास्ता भटक गए हैं।
लालच ने इंसान की आत्मा में ज़हर घोल दिया है, दुनिया को नफ़रत से घेर दिया है, हमें दुख और खून-खराबे की ओर धकेल दिया है। हमने गति तो विकसित कर ली है, लेकिन खुद को बंद कर लिया है: प्रचुरता देने वाली मशीनरी ने हमें अभाव में छोड़ दिया है। हमारे ज्ञान ने हमें निंदक बना दिया है, हमारी चतुराई ने कठोर और निर्दयी। हम बहुत ज़्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं: मशीनरी से ज़्यादा हमें मानवता की ज़रूरत है; चतुराई से ज़्यादा हमें दयालुता और सौम्यता की ज़रूरत है। इन गुणों के बिना, जीवन हिंसक हो जाएगा और सब कुछ खो जाएगा।
हवाई जहाज़ और रेडियो ने हमें एक-दूसरे के और करीब ला दिया है। इन आविष्कारों का मूल स्वभाव ही मनुष्य की अच्छाई की पुकार करता है, हम सबकी एकता के लिए सार्वभौमिक भाईचारे की पुकार करता है। आज भी मेरी आवाज़ दुनिया भर के लाखों लोगों तक पहुँच रही है, लाखों निराश पुरुषों, महिलाओं और छोटे बच्चों तक, जो उस व्यवस्था के शिकार हैं जो पुरुषों को निर्दोष लोगों पर अत्याचार करने और उन्हें जेल में डालने के लिए मजबूर करती है। जो लोग मुझे सुन सकते हैं, उनसे मैं कहता हूँ, "निराश मत होइए।"
आज जो दुःख हम पर मंडरा रहा है, वह लालच का, मानव प्रगति के मार्ग से डरने वाले लोगों की कटुता का, मिटने का परिणाम है। लोगों की नफ़रत मिट जाएगी और जनता से छीनी गई शक्ति जनता के पास वापस आ जाएगी और आज़ादी कभी नष्ट नहीं होगी।
संत ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में लिखा है, "परमेश्वर का राज्य मनुष्य के भीतर है।" न किसी एक व्यक्ति में, न ही मनुष्यों के समूह में, बल्कि सभी मनुष्यों में - आप लोगों में।
आप लोगों में शक्ति है, मशीनें बनाने की शक्ति, खुशियाँ पैदा करने की शक्ति। आप लोगों में जीवन को स्वतंत्र और सुंदर बनाने की, इस जीवन को एक अद्भुत रोमांच बनाने की शक्ति है। तो फिर लोकतंत्र के नाम पर आइए उस शक्ति का उपयोग करें। आइए हम सब एकजुट हों। आइए हम एक नई दुनिया के लिए लड़ें, एक सभ्य दुनिया जो लोगों को काम करने का मौका देगी, जो आपको भविष्य, बुढ़ापा और सुरक्षा देगी। आइए हम दुनिया को आज़ाद करने के लिए, राष्ट्रीय बाधाओं को दूर करने के लिए, लालच, नफ़रत और असहिष्णुता को दूर करने के लिए लड़ें। आइए हम एक तर्कपूर्ण दुनिया के लिए लड़ें, एक ऐसी दुनिया जहाँ विज्ञान और प्रगति सभी लोगों को खुशियाँ प्रदान करें। आइए हम सब एकजुट हों!
ऊपर देखो। बादल छँट रहे हैं, सूरज चमक रहा है। हम अँधेरे से निकलकर उजाले में आ रहे हैं। इंसान की आत्मा को पंख लग गए हैं, और आखिरकार वह उड़ने लगी है। वह इंद्रधनुष में उड़ रहा है - आशा के प्रकाश में - भविष्य में, उस शानदार भविष्य में जो तुम्हारा, मेरा और हम सबका है। ऊपर देखो। ऊपर देखो!
--चार्ली चैपलिन, द ग्रेट डिक्टेटर (1940) से उद्धृत
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